HI – Samadhi2 समाधि 2 – वीडियो ट्रांसक्रिप्शन

ये वो नहीं जो तुम सोचते हो

प्राचीन से आधुनिक काल तक दुनिया के सबसे महानतम आध्यात्मिक गुरुओं ने विचार साझा किया है कि हमारे अस्तित्व की गहरी सच्चाई किसी एक विशेष धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा की सम्पत्ति नहीं है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाई हैा कवि रूमी ने कहा है “ऐसा चंद्रमा कहाँ है जो न कभी उगता है न डूबता है? ऐसी आत्मा कहाँ है जो हमारे साथ है भी और नहीं भी।

यह न कहो कि वह यहाँ या वहाँ है।

सारी रचना ‘वही’ है, लेकिन उन आँखों के लिए जो उसे देख सकती हैं।

टॉवर ऑफ़ बेबल की कथा में मानवता अनगिनत भाषाओँ , विश्वास, संस्कृतियों और दिलचस्पियों में बँटी हुई है ।

बेबल का शाब्दिक अर्थ है “ईश्वर का द्वार”।

द्वार हमारा सोचने वाली बुद्धि है – हमारी अनुकूलित संरचनाएँ।

उन लोगों के लिए जो अपनी असली प्रकृति, नाम और रूप से अलग अपने अस्तित्व को समझने का प्रयास करते हैं, उन्हें द्वार से परे के महान रहस्य से अवगत कराया जाता है।

एक पुरानी हाथी की नीति कथा के ज़रिए बताया गया है कि कैसे अलग-अलग परंपराएँ एक ही महान सत्य की ओर इशारा कर रही हैं।

कुछ अंधे लोग एक हाथी के अलग-अलग अंगों को छूते हैं, और सबकी एक अलग धारणा बनती है कि हाथी क्या है।

हाथी के पैर के पास खड़ा व्यक्ति हाथी को एक पेड़ की तरह बताता है।

पूंछ की ओर खड़ा व्यक्ति उसे रस्सी जैसा बताता है।

हाथी के दाँत को छूने वाला व्यक्ति उसे भाले की तरह बताता है।

और कोई जो कान को छूता है, उसे लगता है कि हाथी एक पंखे की तरह है।

जो हाथी के पेट को छूता है उसे हाथी दीवार की तरह लगता है।

समस्या यह है कि हम हाथी के अपने अंश को छूते हैं और हम अपने अनुभव को ही सच मान लेते हैं।

हम न तो स्वीकार करते हैं न ही मानते हैं कि हर व्यक्ति का अनुभव एक ही प्राणी के विभिन्न पहलू हैं।

सार्वकालिक दर्शन एक समझ है कि सभी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराएँ एक ही सार्वभौमिक सत्य का उल्लेख करती हैं।

एक रहस्यात्मक या परम सत्य जिसकी नींव पर सभी आध्यात्मिक ज्ञान और उसके सिद्धांत विकसित हुए हैं।

स्वामी विवेकानंद ने यह कह कर सार्वकालिक शिक्षा का सारांश प्रस्तुत किया, “हर धर्म का लक्ष्य आत्मा में ईश्वर का बोध है।

यही एकमात्र वैश्विक धर्म है।

” इस फिल्म में जब हम ईश्वर शब्द का प्रयोग करते हैं तो वह ज्ञानातीत रूपक मात्र है जो सीमित अहंकारी मन से परे उस विलक्षण रहस्य की ओर इशारा करता है।

अपने सच्चे आत्म ज्ञान या अंतर्निहित आत्म को समझने का मतलब अपनी दिव्य प्रकृति को जानना है।

हर एक आत्मा में चेतना के नए उच्च स्तर की समझ, उसे नींद से जगाने और उसके स्वरूप के साथ उसे पहचानने की क्षमता होती है।

अपनी पुस्तक “ब्रेव न्यू वर्ल्ड ” के लिए विख्यात लेखक और दूरदर्शी आल्डस हक्सले ने “द पेरिनियल फिलॉसफी” नामक पुस्तक भी लिखी, जिसमें उन्होंने उस शिक्षा के बारे में लिखा है जो इतिहास में बार बार दोहराई जाती है, जो उस संस्कृति का रूप लेती है जिसमें उसे महसूस किया जाता है।

वे लिखते हैं, “द पेरिनियल फिलॉसफी संस्कृत सूत्र “तत् त्वम असि”; “जो तुम हो” में काफ़ी संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया गया है।

आत्मा या श्रेष्ठ अविनाशी आत्म वही है जो ब्रह्म में लीन है, यह परम सिद्धांत है हर अस्तित्व का, और हरेक मानव का आखिरी अंत है स्वयं तथ्य की खोज करना।

यह पता लगाना कि दरअसल वह कौन है? हर परम्परा रत्न के फलक जैसी है जो उसी सत्य का अलग परिप्रेक्ष्य दिखाती है, जबकि परस्पर वही भाव प्रतिध्वनित और प्रकाशित करती है।

चाहे कोई भी भाषा या वैचारिक सोच इस्तेमाल की गयी हो, सभी धर्म जो शाश्वत सत्य की शिक्षा देते हैं, उनकी यही अवधारणा होती है कि किसी परम तत्व से मिलन होना है, जो हमारी समझ से परे है।

यह संभव है कि उनसे सीख और उनके साथ स्व की भावना का भेद किए बिना एक या अनेक स्रोतों की शिक्षा को एकीकृत करें।

ऐसा कहा जाता है कि समस्त सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान उस परम सत्य की ओर इशारा करती हुई उंगलियाँ हैं।

यदि हम राहत के लिए इस सीख से हठधर्मिता के साथ चिपके रहते हैं तो यह हमारे आध्यात्मिक विकास में बाधक बन जाएगा।

सत्य को किसी अवधारणा से परे जानने के लिए हमें सभी लगाव और मोह को छोड़ना होगा, सभी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागना होगा।

अहंकार के परिप्रेक्ष्य से आपको समाधि की ओर इशारा करने वाली उँगली सीधे पाताल की ओर इशारा करती है।

क्रॉस के सेंट जॉन ने कहा है, “अगर कोई सत्य की राह पर चलने की इच्छा रखता है, तो उसको अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिए और अंधेरे में चलना चाहिए।

” समाधि अज्ञात में एक छलांग के साथ शुरू होती है।

प्राचीन परंपराओं में यह कहा गया है कि समाधि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अंततः चेतना को सभी ज्ञात वस्तुओं से दूर रखना होगा; सभी बाहरी प्रत्यक्ष वस्तुओं से, अनुकूलित विचारों और संवेदनाओं से, स्वयं चेतना की दिशा में।

आंतरिक स्रोत की ओर; अपने अस्तित्व के केंद्र या मूल में।

इस फिल्म में जब हम समाधि शब्द का प्रयोग करते हैं तो हम परम तत्व की ओर इशारा करते हैं।

उच्चतम समाधि की ओर, जिसे निर्विकल्प समाधि नाम दिया गया है।

निर्विकल्प समाधि में अपनी गतिविधि बंद होती है, खोजने और करने की।

हम केवल उसके बारे में बोल सकते हैं जो हमारे पास जाने पर दूर जाता है और जो हमारे वापस लौटने पर फिर दिखाई देने लगता है।

न तो कोई समझ है और न ही कोई नासमझी, न तो कोई “चीज़” है और न ही “कोई चीज़ नहीं”, न तो चेतना और न ही अचेतन।

यह पूर्ण, अतुलनीय, और मन के लिए रहस्यपूर्ण है।

जब आत्मा गतिविधि की ओर लौटती है तब अज्ञानता रहती है ; एक तरह का पुनर्जन्म, और सब कुछ फिर से नया हो जाता है।

हमारे अंदर दिव्य शक्ति की खुशबु रह जाती है, जो तब तक रहती है जब तक मानव इस पथ पर बढ़ते रहते हैं।

प्राचीन परंपराओं में अनेक तरह की समाधि का वर्णन है और भाषा ने वर्षों तक काफ़ी भ्रम पैदा किया है।

हम समाधि शब्द का चयन ज्ञानातीत मिलन को दर्शाने के लिए कर रहे हैं, लेकिन हम इतनी ही आसानी से किसी भी परंपरा के शब्द का प्रयोग कर सकते थे।

समाधि एक प्राचीन संस्कृत शब्द है जो भारत के वैदिक, योगिक और सांख्य परंपरा में आम है, और कई अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में मौजूद है।

समाधि पतंजली योग के आठ अंगो में से एक, और बुद्ध के पावन अष्टांगिक मार्ग में आठवां है।

बुद्ध ने “निर्वाण” शब्द का प्रयोग किया “वान” का समापन या आत्म गतिविधि का समापन।

पतंजलि ने योग या समाधि को संस्कृत के “चित्त वृत्ति निरोध” के रूप में वर्णित किया, जिसका संस्कृत अर्थ है “भंवर या सर्पिल मन का समापन।

” यह चेतना के सम्पूर्ण विन्यास या मन के रचनात्मक विन्यास को सुलझाना है।

समाधि किसी अवधारणा को नहीं बताती क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने वैचारिक मन को त्याग दें।

विभिन्न धर्मों ने दिव्य मिलन का वर्णन करने के लिए विभिन्न शब्दों का उपयोग किया है।

दरअसल धर्म या रिलिजन शब्द का अर्थ भी वैसा ही कुछ है।

लैटिन में “रैलिगेर” का मतलब है पुनः बांधना या पुनः जुड़ना।

योग में भी इसका वही अर्थ है जिसका मतलब है सांसारिकता को परमात्मा से बांधना या जोड़ना।

इस्लाम में प्राचीन अरबी शब्द इस्लाम का ही शाब्दिक अर्थ है पूर्ण समर्पण अथवा भगवान से याचना।

यह आत्मा की संपूर्ण विनम्रता या आत्मसमर्पण का प्रतीक है।

ईसाई रहस्यवादी जैसे कि असीसी के सेंट फ्रांसिस, एविला की सेंट टेरेसा और क्रॉस के सेंट जॉन अंतर्निहित ईश्वर के साम्राज्य, ईश्वर से दिव्य मिलन का वर्णन करते हैं गॉस्पेल ऑफ़ थॉमस में, ईसा मसीह ने कहा है “साम्राज्य यहाँ या वहाँ नहीं है।

बल्कि पूरे संसार में परमपिता का शासन है और लोग इसे देख नहीं पाते हैं।

“ग्रीक दार्शनिक प्लेटो, प्लोटिनस, परमेनाइड्स और हेराक्लिटस के लेखन को सार्वकालिक शिक्षण बिंदु के लेंस के माध्यम से देखने पर इसी ज्ञान की ओर इशारा करते नज़र आते हैं।

प्लॉटिनस सिखाता है कि सबसे बड़ा मानवीय प्रयास अपनी आत्मा को सर्वोच्च शक्ति की ओर ले जाने और उसमें एकाकार होने के लिए निर्देशित होना चाहिए।

लकोटा औषधि और पवित्रात्मा ब्लैक एल्क ने कहा है, “पहली शांति, जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह मानव के भीतर से आती है जब वे ब्रह्मांड और उसकी शक्तियों के साथ अपना संबंध, अपनी एकता मह्सूस करते हैं, और जब वे महसूस करते हैं कि ब्रह्मांड के केंद्र में महान आत्मा रहती है और इसका केंद्र वास्तव में हर जगह है।

यह हम में से प्रत्येक के भीतर है।

जब तक हम समाधि में ना हो जागरूकता के पथ पर हमेशा दो ध्रुवीयताएँ होती हैं, दो द्वार जिनमें आप प्रवेश कर सकते हैं।

इसके दो पहलु है एक शुद्ध चेतना की ओर, दूसरा असाधारण दुनिया की ओर।

ऊपरी धारा परमात्मा की ओर जाती है, और निचली धारा माया और उन सबकी ओर जो प्रत्यक्ष है, देखा और अनदेखा, दोनों।

सगे सम्बन्धियों के साथ रिश्ता और परमात्मा के साथ रिश्ते को श्री निसर्गदत्त महाराज के निम्नलिखित उद्धरण से संपूर्ण रूप से समझा जा सकता है कि: “ज्ञान यह जानना है कि मैं कुछ भी नहीं हूँ, प्रेम यह जानना है कि मैं ही सब कुछ हूँ, और इन दोनों के बीच मेरी ज़िन्दगी चलती है” इस मिलन से जिसका जन्म होता है वह एक नई दिव्य चेतना है।

इन ध्रुवीयताओं के विवाह या मिलन से कुछ उत्पन्न हुआ या द्वैतवादी पहचान का पतन, फिर भी जो पैदा हुआ वह कोई चीज़ नहीं है और वह कभी पैदा ही नहीं हुआ था।

चेतना कुछ नई रचना से खिलती है, जिसे आप कह सकते हैं शाश्वत त्रिमूर्ति।

परमपिता परमात्मा, ज्ञानातीत, जिसे जाना नहीं जा सकता और जो अपरिवर्तनशील है, जो दिव्य शक्ति से जुड़ा है , जो पूरी तरह परिवर्तनशील है।

यह मिलन एक रासायनिक परिवर्तन लाता है; एक तरह की मृत्यु और पुनर्जन्म।

वैदिक शिक्षण में दो मौलिक शक्तियाँ दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करती हैं शिव और शक्ति।

विभिन्न देवताओं के नाम और चेहरे पूरे इतिहास में बदल जाते हैं लेकिन उनके मौलिक गुण वही रहते हैं।

इस मिलन से पैदा होती है एक नई दिव्य चेतना, दुनिया में अस्तित्व का एक नया तरीका।

दो ध्रुवीयताएँ अविश्वसनीय रूप से एक।

एक सार्वभौमिक ऊर्जा, केन्द्रहीन, सीमा से मुक्त।

यह विशुद्ध प्रेम है।

इसमें पाने या खोने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि यह पूरी तरह खाली है लेकिन बिल्कुल संपूर्ण।

चाहे वह मेसोपोटामिया के रहस्यमय संप्रदाय हों, या आध्यात्मिक परम्पराएँ हों बेबिलोनिया और असीरिया की, प्राचीन मिस्र के धर्म हों, या प्राचीन अफ्रीका की नूबियन और केमेटिक संस्कृतियाँ, शमनिक और मूल परंपराएँ दुनिया भर की , प्राचीन ग्रीस के रहस्यवादी, नॉस्टिकवादी अद्वैतवादी बौद्ध, ताओवादी, यहूदी, ज़रदुश्त, जैन , मुस्लिम, या ईसाई हों, पर सबको जोड़ने वाली कड़ी है उनकी सर्वोच्च आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि, जिसने अपने अनुयायियों को समाधि हासिल करने की इजाजत दी है।

मूल शब्द समाधि का अर्थ सभी चीज़ों में समानता या एकता को महसूस करना है।

इसका मतलब संघ है।

यह अपने सभी पहलुओं को एकजुट करना है।

लेकिन समाधि की वास्तविक प्राप्ति के लिए बौद्धिक समझ को भ्रमित मत करो।

दरअसल आपकी स्थिरता, आपका खालीपन ही है जो एकजुट करता है सर्पिल जीवन के सभी स्तरों को।

समाधि के इस प्राचीन शिक्षण के माध्यम से ही मानवता सभी धर्मों के सामान्य स्रोत को समझने की शुरुआत कर सकती है और एक बार फिर सर्पिल जीवन, परमात्म, धम्म या ताओ के साथ एक सीध में आ सकती है।

सर्पिलता वह पुल है जो सूक्ष्म जगत से ब्रह्मांड तक फैलता है।

आपके डीएनए से जो ऊर्जा आंतरिक कमल तक चक्रों के माध्यम से, आकाशगंगा की सर्पिल र्भुजाओं तक व्याप्त है।

आत्मा का हर स्तर सर्पिलता के माध्यम से सदा विकसित शाखाओं के रूप में व्यक्त किया जाता है, जीते हुए, अन्वेषण करते हुए।

सच्ची समाधि स्वयं के सभी स्तरों पर शून्यता को प्राप्त करना है।

आत्मा के सभी आवरणों में।

सर्पिलता अंतहीन खेल है द्वंद्व तथा जीवन और मृत्यु के चक्र का।

कभी-कभी हम स्रोत से अपना सम्बन्ध भूल जाते हैं।

जिस लेंस से हम देखते हैं वह बहुत छोटा है और हम अपनी पहचान करते हैं कि हम धरती पर रेंगने वाले सीमित प्राणी हैं, ताकि एक बार फिर यात्रा पूरी कर सकें वापस उस स्रोत तक; केंद्र तक, जो हर जगह है।

चुआंग त्ज़ू ने कहा है, “जब इस और उस के बीच कोई और अलगाव नहीं होता है, तो उसे ताओ का स्थिर बिंदु कहा जाता है।

सर्पिल के केंद्र में स्थिर बिंदु पर सभी में अनंत को देख सकते हैं।

” प्राचीन मंत्र “ओम् मणि पद्मेहम” का एक काव्यात्मक अर्थ है।

जैसे कोई जागृत या महसूस करता है अपने कमल के भीतरी रत्न को।

उसी तरह आपकी सच्ची प्रकृति आत्मा के भीतर जागती है, दुनिया के भीतर दुनिया के रूप में।

हर्मेटिक सिद्धांत “जो ऊपर है वही नीचे है, जो नीचे है वही ऊपर है” के प्रयोग द्वारा हम समनुरूप उपयोग कर सकते हैं मन और स्थिरता के बीच संबंधों की समानता, सापेक्ष और निरपेक्ष को समझने के लिए।

समाधि की गैर-वैचारिक प्रकृति को समझने का एक तरीका है ब्लैक होल की सादृश्यता का प्रयोग करना।

ब्लैक होल परंपरागत रूप से अंतरिक्ष के एक क्षेत्र के रूप में वर्णित है जिसमे गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली है कि कोई प्रकाश या पदार्थ बच नहीं सकता है।

नए सिद्धांत यह पुष्टि करते है कि सभी वस्तुएँ छोटे से छोटे सूक्ष्मदर्शी कण से लेकर आकाशगंगा जैसी ब्रह्मांडीय संरचनाओं तक में ब्लैक होल या रहस्यमय एक केंद्र होता है ।

इस समानता में हम उपयोग करने जा रहे हैं ब्लैक होल की यह नई परिभाषा कि “केंद्र जो हर जगह है”।

ज़ेन में कई कवितायें और उपाख्यान हैं जो हमें बिना द्वार के प्रवेश-द्वार से रू-ब-रू करवाते हैं।

समाधि प्राप्त करने के लिए हमें बिन दरवाज़े के प्रवेश द्वार से गुज़रना होगा।

किसी घटना का क्षितिज अंतरिक्षीय समय में वह सीमा है जिसके बाद कोई भी घटना किसी बाहरी व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है ‘ जिसका मतलब है कि घटना क्षितिज आपके लिए अज्ञात है।

आप कह सकते हैं कि घटना के क्षितिज का ब्लैक होल एक द्वारविहीन द्वार की तरह है।

यह आत्म और अनात्म के बीच की सीमा है।

ऐसा कोई “मैं “नहीं है जो इस घटना के क्षितिज के पार जा सके।

ब्लैक होल के केंद्र में एक-आयामी चीज़ है जिसमें बहुत ही छोटी जगह में अरबों सूर्यों का भार है।

जिसका मतलब है अनंत भार।

यानी कि ब्रह्मांड कुछ इतनी छोटी जगह में जो एक रेत के कण से भी छोटा हो।

एकात्मकता समय से परे है और अंतरिक्ष से भी।

भौतिकी के अनुसार गति असंभव है , चीज़ों का अस्तित्व असंभव है।

यह जो कुछ है, वह सम्बंधित नहीं है किसी भी धारणा से, इसके बावजूद इसे स्थिरता नहीं कहा जा सकता।

यह स्थिरता और गति से परे है।

जब आप उस केंद्र को समझ जाते हैं जो हर जगह है कहीं भी नहीं है, तो द्वंद्व खंडित करता है, आकार और खालीपन को समय और अनंत को।

इसे हम ऐसी गतिशील स्थिरता और भरा पूरा खालीपन कह सकते हैं जो स्थापित है पूर्ण अंधेरे के केंद्र में।

ताओवादी शिक्षक लाओ त्से ने कहा है “अंधेरे के भीतर अंधेरा सभी समझ का प्रवेश द्वार।

” लेखक और तुलनात्मक पुराणों के अध्येता जोसेफ़ कैम्पबेल पुनरावर्ती प्रतीक का वर्णन करते है जो हिस्सा है शाश्वत दर्शन का जिसको वो एक्सिस मंडी कहते है,जिसका मतलब है केंद्र बिंदु या उच्चतम शिखर।

एक धुरी जिसके चारों ओर सब कुछ घूमता है।

वह बिंदु जहाँ स्थिरता और गति एक साथ होते हैं।

इसके केंद्र से एक शक्तिशाली वृक्ष फलता फूलता है।

एक बोधी वृक्ष जो पूरे संसार को जोड़ता है।

जैसे सूर्य ब्लैक होल में चला जाता है, जब आप परम ज्ञान के करीब पहुँचते है, आपका जीवन इसके चारों ओर घूमना शुरू कर देता है और आप गायब होने लगते हैं।

जैसे ही आप स्थिर आत्म से संपर्क करते हैं, यह अहंकार संरचना को डरा सकता है।

द्वारपालक उनका परिक्षण करते है जो अपनी यात्रा पर हैं।

हर किसी को अपने सबसे बड़े डर का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और साथ ही साथ अपनी अंतर्निहित शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।

अपने अचेतन भय को और छिपी सुंदरता को प्रकाशित करना चाहिए।

यदि आपका मन विचलित नहीं होता है और आप कोई आत्म प्रतिक्रिया भी नहीं करते है तो अचेतन से उत्पन्न सभी घटनाएँ समाप्त हो जाती है।

यह आध्यात्मिक यात्रा का वह समय है जब विश्वास की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।

विश्वास से हमारा क्या मतलब है? आस्था और विश्वास एकसमान नहीं है।

विश्वास है अपने दिमागी स्तर पर कुछ स्वीकार करना राहत और आश्वासन के लिए।

विश्वास है अनुभव के अंकन या उसे नियंत्रित करने का दिमाग़ी तरीक़ा।

आस्था इसके ठीक विपरीत है।

आस्था है पूरी तरह से अज्ञानी बने रहना, हर वो चीज़ स्वीकार करना जो उत्पन्न हो आपके अचेतन से।

आस्था एकात्मकता के खिंचाव के प्रति समर्पण है, अपने आप का सम्मिलन या समापन द्वारविहीन द्वार से गुज़रने के लिए।

आकाशगंगा का विकास और उसकी संरचना ब्लैक होल से निकटता से बंधी हुई है ठीक उसी प्रकार जैसे आपका विकास जुड़ा हुआ है अंतर्भूत आत्म की उपस्थिति के साथ एकात्म, जो आपका सच्चा स्वभाव है।

हम ब्लैक होल को नहीं देख सकते हैं, लेकिन हमें इसके आस-पास गतिशील चीज़ों से इसके बारे में पता चलता है, जिस प्रकार यह भौतिक वास्तविकता के साथ परस्पर-क्रिया करता है।

उसी तरह हम अपनी असली प्रकृति को नहीं देख सकते हैं।

स्थिर आत्म कोई वस्तु नहीं है, लेकिन हम देख सकते हैं प्रबुद्ध क्रिया।

जैसा कि ज़ेन मास्टर सुजुकी ने कहा है, “सच मानिये तो यहाँ कोई प्रबुद्ध लोग नहीं है।

केवल प्रबुद्ध गतिविधि है।

” हम इसे देख नहीं सकते जैसे कि आँख खुद को नहीं देख सकती है।

हम इसे नहीं देख सकते क्योंकि यह वो चीज़ है जिसके माध्यम से देखना संभव है।

ब्लैक होल की तरह समाधि भी शून्यता नहीं है , और न ही यह कोई चीज़ है।

यह होने या न होने के द्वन्द्व को खत्म करती है।

परम सत्य में प्रवेश के लिए कोई द्वार नहीं है, लेकिन अनंत पथ हैं।

धर्म का पथ एक अंतहीन सर्पिल पथ की तरह है जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं है।

कोई भी द्वारविहीन द्वार से गुज़र नहीं सकता।

किसी की बुद्धि ने अभी तक यह पता नहीं लगाया है और न कभी लगा पायेगा।

कोई भी द्वारविहीन द्वार से नहीं गुज़र सकता है, तो ऐसा ही सही।

समाधि पथहीन मार्ग, सुनहरी कुंजी है।

यह हमारी आत्म संरचनाओं के साथ पहचान का अंत है जो हमारी आंतरिक और बाहरी दुनिया को अलग करती हैं।

कई विकासशील नमूने हैं जो आत्म संरचना की परतों या स्तरों का वर्णन करते हैं हम एक उदाहरण का उपयोग करेंगे जो बहुत प्राचीन है।

उपनिषदों में, आत्मन या आत्मा को ढकने वाले आवरण को कोष कहा जाता है।

प्रत्येक कोष एक दर्पण की तरह है।

आत्म संरचना की एक परत; एक आवरण या माया का स्तर जो हमें अपनी मूल प्रकृति को समझने से भटकाता है अगर उससे हमारी पहचान होती है।

अधिकांश लोग प्रतिबिंब देखते हैं और मान लेते हैं कि वे वही हैं।

एक दर्पण पशु परत, यानी भौतिक शरीर को दर्शाता है।

एक और दर्पण दर्शाता है आपके मन, आपकी सोच, आपकी सहज वृत्तियों, और धारणाओं को।

दूसरा आपकी आंतरिक ऊर्जा या प्राण को, जिसे आप अंतर्मुखी होकर देख सकते हैं।

एक और दर्पण आपके काल्पनिक स्तर को दर्शाता है जो उच्चतर मन या ज्ञान की परत है, और बहुत सारी ऐसी सर्वोच्च परतें हैं जो अतींद्रिय या अद्वैत आनंद का अनुभव कराती हैं समाधि की ओर अग्रसर होने पर।

यहाँ संभावित रूप से अनगिनत दर्पण या आत्मा के पहलू हैं जिसमें कोई भी अंतर कर सकता है, और वे लगातार बदलते रहते हैं।

अधिकांश लोगों ने अभी तक प्राणिक, उच्च मन और अद्वैत आनंद की परतों की खोज नहीं की है वे उनके अस्तित्व के बारे में भी नहीं जानते हैं।

ये परतें आपके जीवन को सूचित कर रही हैं लेकिन आप उन्हें नहीं देख रहे हैं।

छिपे दर्पण दिखाई देने वालों की तुलना में हमारे जीवन को अधिक जानकारी देते हैं।

वे अदृश्य हैं क्योंकि ज्यादातर लोगों के लिए वे पूरी तरह उनकी चेतना मे प्रकाशित नहीं होते हैं इंद्र के रत्न-जाल की तरह, सभी दर्पण एक दूसरे को प्रतिबिंबित करते हैं और प्रतिबिंब असीम रूप से हर दूसरे प्रतिबिंब को प्रतिबिंबित करते हैं।

एक स्तर पर कोई बदलाव सभी स्तरों को एक साथ प्रभावित करता है।

इन दर्पणों में से कुछ छाया में छोड़े जा सकते हैं जब तक कि हम इतने भाग्यशाली न हों कि उन पर प्रकाश डालने में हमारी मदद के लिए कोई सक्षम मार्गदर्शक हमारे साथ हो।

सच ये है कि हम ये नहीं जानते कि हम क्या नहीं जानते है |

अब कल्पना करें कि आप सभी दर्पणों को तोड़ दें।

आपके पास स्वयं को प्रतिबिंबित करने के लिए कुछ भी नहीं है।

आप कहाँ हैं? जब मन स्थिर हो जाता है तो दर्पण प्रतिबिंबित करना बंद कर देते हैं।

फिर कोई विषय और वस्तु नहीं रह जाता है।

लेकिन इस स्थिति को शून्यता या विस्मृति की आदिम स्थिति समझने की गलती ना करें।

आत्म कुछ नहीं है लेकिन ऐसा भी न समझें कि यह कुछ भी नहीं है।

स्रोत कोई चीज नहीं है, यह अपने आप मे खालीपन या स्थिरता है।

यह एक खालीपन है जो सभी चीजों का स्रोत है।

आकृति को बिल्कुल खालीपन के स्वरूप में महसूस किया जाता है और खालीपन को एक आकृति में पा सकते हैं।

यह स्रोत महान सृष्टि का गर्भ है जो सभी संभावनाओं से भरी हुई है।

समाधि अवैयक्तिक चेतना की जागृति है।

जैसे ही आप सपना देखते है, जागने पर आपको एहसास होता है कि सपने में जो कुछ था वो बस आपके दिमाग में है।

समाधि को समझने पर यह महसूस किया जाता है कि इस दुनिया में सब कुछ ऊर्जा के स्तर पर स्तरों और चेतना के भीतर हो रहा है यह दर्पण के भीतर सारे दर्पण हैं, सपनों के भीतर सपने।

आप जिसे मानते हैं कि आप हैं, सपना और और सपना देखने वाला, दोनों हैं।

इस फिल्म में हम जो भी कहते हैं, उसे भूल जाएँ।

उसे मन में धारण न करें।

आत्मा सपना देख रहा है, आपका सपना देख रहा है।

सपना, वह सब कुछ है जो बदल रहा है, लेकिन इस परिवर्तनहीनता को महसूस करना संभव है।

यह अहसास सीमित व्यक्तिगत मन से समझा नहीं जा सकता है।

जब हम निर्विकल्प समाधि से बाहर आते हैं तो दर्पण फिर से प्रतिबिंबित करना प्रारंभ करते हैं यह समझा जाता है कि जिस दुनिया में अपने रहने की बात आप सोचते हैं दरअसल वह आप हैं।

जो केवल आपका एक अस्थायी प्रतिबिंब है और आप उसी तक सीमित नहीं है, लेकिन आप अपने सच्चे प्रकृति के सभी के स्रोत को जानते हैं ।

उच्च ज्ञान की यह शुरुआत, भ्रूण, “प्रज्ञा” या आत्मिक ज्ञान समाधि से उत्पन्न हुआ है।

जॉब चोकमाह की किताब के अनुसार ज्ञान शून्यता से उपजती है।

ज्ञान का यह बिंदु असीम रूप से छोटा होते हुए भी पूरे अस्तित्व को घेरता है, लेकिन इसे तब तक समझा नहीं जा सकता जब तक उसने दर्पणों के महल में कोई आकार और स्वरूप ना दिया हो उस दर्पण के महल को “बिनाह ” कहा जाता है, जो गर्भ उच्च ज्ञान से उत्पन्न होता है और जो भ्रूणीय ईश्वर की आत्मा को आकार देता है।

[संगीत] इंडियाजिव द्वारा “अब्वून द बाश्माया” दर्पण या मन का अस्तित्व कोई समस्या नहीं है।

इसके विपरीत, मानव धारणा की त्रुटि या विचलन यह है कि हम इससे अपनी पहचान करते हैं।

यह भ्रम, कि हम सीमित आत्म हैं, माया है।

योगिक मार्ग का कहना है कि समाधि को समझने के लिए ध्यान लक्ष्य का पालन तब तक करना चाहिए जब तक कि आप इसमें लीन न हो जाएँ या यह आप में न समा जाए।

हालांकि विभिन्न परंपराओं में भाषा अपने मूल में असमान हैं, लेकिन वे सभी आत्म-पहचान और आत्म केंद्रित गतिविधि के समापन की ओर इशारा करते है।

बुद्ध हमेशा नकारात्मक शब्दों में पढ़ाया करते थे।

उन्होंने सिखाया कि सीधे आत्म संरचना की खोज करें।

उन्होंने यह नहीं कहा कि समाधि क्या थी सिवाय इसके कि यह सभी कष्टों का अंत है ।

अद्वैत वेदांत का एक शब्द है “नेति ” जिसका अर्थ है “ना ये ना वो।

” आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले लोग अपनी असली प्रकृति या ब्रह्म की प्रकृति के बारे में पहले यह जानकर खोज करते हैं कि वे क्या नहीं हैं।

इसी तरह ईसाई धर्म में अविला की सेंट टेरेसा ने प्रार्थना के लिए एक दृष्टिकोण का वर्णन किया जो नकारात्मक पथ, या नेगेटिवा पर आधारित है ।

शांत, समर्पण और मिलाप द्वारा प्रार्थना, यही एक तरीका है परम तत्व तक पहुँचने का।

अलग होने की इस क्रमिक प्रक्रिया से व्यक्ति ऐसी कोई चीज़ छोड़ सकता है जो स्थाई न हो, जो बदल रहा हो।

मन, अहंकार का निर्माण और आत्म की छिपी परतों सहित सभी घटनाएं।

अचेतन मन का उस एक स्रोत को प्रतिबिंबित करने के लिए पारदर्शी होना ज़रूरी है।

अगर अचेतन में कुछ गहरा ज्ञान या कोई आत्म परिचालन है, तो फिर हमारा जीवन बंद रह जाता है एक छिपे पैटर्न की भूलभुलैया में जिसमे अज्ञात आत्म शामिल है।

जब स्व की सभी परतें शून्य के रूप में प्रकट होती हैं तो व्यक्ति स्व से मुक्त हो जाता है।

सभी अवधारणाओं से मुक्त।

आपके विकास का महत्वपूर्ण बिंदु वह है जब आप महसूस करते हैं कि आप नहीं जानते कि आप कौन हैं।

साँस का अनुभव कौन करता है? स्वाद का अनुभव कौन करता है? मंत्र, अनुष्ठान, नृत्य, पहाड़ का अनुभव कौन करता है? साक्ष्य ही गवाह है, अवलोकन ही पर्यवेक्षक।

सबसे पहले जब आप पर्यवेक्षक का अवलोकन करते हैं तो आप केवल झूठे आत्म को देखेंगे, लेकिन यदि आप आग्रही हैं तो वह हार मान लेगा।

सीधे पूछताछ करें कौन और क्या अनुभव करता है।

बिना पलकें झपकाए, तीखेपन से, सूक्ष्मदर्शी बनकर अपने अस्तित्व की पूरी ताकत के साथ।

[संगीत] “गते, गते, परागते।

पार सम गते, बोधिस्वाहा।

” (अर्थ: चला गया, बहुत दूर, जागृत स्रोत से परे पूरी तरह से) – बिना अनुवाद उपशीर्षक – जागने वाला कोई आत्म नहीं है।

जागने वाला कोई “आप” नहीं हो।

आप जिसे जगा रहे हैं वह अलग आत्म का भ्रम है।

अपने उस सपने से जो सीमित “आप” हैं।

इसके बारे में बात करना अर्थहीन है।

आत्म को समझने के लिए आत्म का वास्तविक समापन होना चाहिए कि यह क्या है, और जब यह महसूस हो जाए तो इसके बारे में कहने को कुछ भी नहीं बचता है।

जैसे ही आप कुछ कहते हैं आप मन में वापस आ जाते हैं।

मैंने पहले ही बहुत कुछ कहा है।

आम तौर पर चेतना की तीन अवस्थाएँ होती हैं: जागना, सपना देखना और गहरी नींद।

समाधि को कभी-कभी चौथी अवस्था कहा जाता है, जो प्राथमिक अवस्था है चेतना की।

आदिम जागृति जो निरंतर उपस्थित हो सकती है और अन्य चेतन अवस्थाओं के साथ समानांतर में उपस्थित है।

वेदांत में इसे तूरीय कहा जाता है।

तूरीय के लिए अन्य नाम दिए गए है क्राइस्ट चेतना , कृष्ण चेतना, बुद्ध प्रकृति या सहज समाधि।

सहज समाधि में स्थिर आत्म अपनी सभी मानवीय गतिविधियों के पूर्ण उपयोग के साथ उपस्थित है।

स्थिरता बदलती सर्पिल घटना के केंद्र में गतिहीन है।

विचार, भावनाएँ, संवेदनाएँ और ऊर्जा इसकी परिधि के चारों ओर घूमती हैं लेकिन स्थिरता की मात्रा या मैं-हूँ-की भावना बाहरी गतिविधि के दौरान बिल्कुल वैसी बनी रहती है जैसे कि ध्यान में।

यह संभव है कि अंतर्हित आत्म गहरी नींद में भी मौजूद रहे; कि आपकी मैं हूँ की जागरूकता चेतना के परिवर्तन की अवस्थायों के रूप में आती या जाती नहीं है।

यह योगिक निद्रा है।

हिब्रू बाइबिल या ओल्ड टेस्टामेंट का सांग्स ऑफ सांग्स, या सांग ऑफ़ सोलोमन यह कहता है, “मैं सोता हूँ लेकिन मेरा दिल जागता है”।

शाश्वत अवैयक्तिक चेतना का यह अहसास मसीह के शब्दों में दिखाई देता है जब वे कहते हैं “इब्राहिम से पहले, मैं हूँ।

” एक चेतना जो अनगिनत चेहरे, अनगिनत रूपों के माध्यम से चमकती है।

सबसे पहले यह आपके भीतर ध्रुवीयताओं से पैदा हुई नाजुक लौ की तरह लगती है।

समर्पण के साथ समाती हुई पुरुषत्व चेतना या स्त्री शक्ति का उद्घाटन।

यह नाजुक है, और आसानी से खो सकता है, इसकी रक्षा करने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए और जब तक यह परिपक्व न हो इसे जीवित रखना चाहिए।

समाधि साथ ही समयहीन अवस्था है चेतना की एक और अवस्था विकास प्रक्रिया को प्रकट करने की।

कुछ जैविक और समय के साथ विकसित।

जैसे-जैसे कोई समाधि में अधिक से अधिक समय बिताता है, वर्तमान में, शाश्वतता में, तब वह अधिक से अधिक हृदय, आत्मा से दिशाबोध ग्रहण करता है, और अनुकूलित संरचना से कम।

इस तरह कोई निम्नतर मन से मुक्त हो जाता है।

मनोविकार से मुक्त हो जाता है ।

आंतरिक तारों में परिवर्तन आ जाता है।

ऊर्जा बहुत देर तक अचेतन रूप से पुरानी अनुकूलित संरचनों में नहीं बहती, जोकि यह कहने का एक और तरीका है कि किसी को उसकी आत्म संरचना से उसके स्वरूप की बाहरी दुनिया से नहीं पहचाना जाता है।

समाधि प्राप्त करने के लिए इतनी ज़्यादा कोशिश ज़रूरी है कि यह पूरी तरह आत्मसमर्पण बन जाता है स्वयं का, और आत्मसमर्पण ऐसा कि इसमें शामिल हो पूर्ण प्रयास किसी के अस्तित्व का ; उसकी सभी ऊर्जा का।

यह संतुलन है प्रयास और आत्मसमर्पण का, यिन और यांग का।

एक तरह का सरल प्रयास।

भारतीय रहस्यवादी और योगी परमहंस रामकृष्ण ने कहा, “मत खोजो प्रकाश जब तक कि आप उसे इस तरह नहीं खोजते जैसे कि बालों में आग लगी हो और जो तालाब की खोज में हो” आप इसे अपने पूरे अस्तित्व के साथ खोजते हैं।

किसी के अहंकार से आगे बढ़ने के दौरान अत्यधिक साहस, सतर्कता और दृढ़ता ज़रूरी है भ्रूण को जीवित रखने के लिए।

सांसारिक माया जाल में न फँसने के लिए।

इच्छाशक्ति बेहद जरूरी है प्रवाह के विरुद्ध तैरने के लिए, दैहिक साँचे के दबाव और सांसारिक पहिए में पिसने से बचने के लिए।

हर सांस हर विचार, हर क्रिया स्रोत को हासिल करने के लिए होनी चाहिए।

समाधि प्रयास से हासिल नहीं होती है और ना ही बिना प्रयास के।

प्रयास या बिना प्रयास को जाने दें; यह द्वंद्व केवल मन में मौजूद है।

समाधि का वास्तविक अहसास इतना सरल इतना निर्विवाद है कि इसे हमेशा भाषा के माध्यम से गलत समझा जाता है जो स्वाभाविक रूप से द्वंद्वात्मक है।

केवल एक प्रायोगिक चेतना है जो दुनिया के रूप में जागृत है लेकिन यह मन की कई परतों में अस्पष्ट है।

जिस तरह सूर्य बादलों के पीछे छिपा हुआ है वैसे ही मन की प्रत्येक परत हटने के बाद व्यक्ति के अस्तित्व का सार प्रकट हो जाता है।

मन की प्रत्येक परत हटने पर, लोग इसे अलग समाधि कहते हैं।

वे इसे विभिन्न अनुभवों या विभिन्न भौतिक विषयों के नाम देते हैं लेकिन समाधि इतनी सरल है कि जब आपको बताया जाता है कि यह क्या है और कैसे हासिल किया जाए तो आपका मन हमेशा चूक जाता है।

दरअसल समाधि सरल या जटिल नहीं है; यह केवल मन है जो इसे ऐसा बनाता है।

जब कोई मन नहीं होता है तो कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि मन है जिसे रोकने की ज़रूरत है इसे प्राप्त करने के लिए।

यह कोई घटना तो बिल्कुल नही है।

समाधि की सबसे संक्षिप्त व्याख्या शायद इस वाक्यांश में है: “शांत रहें और जानें।

” हम स्थिरता को व्यक्त करने के लिए शब्दों और चित्रों का उपयोग कैसे कर सकते हैं? हम शोर के ज़रिये शांति कैसे व्यक्त कर सकते हैं? समाधि को एक बौद्धिक सिद्धांत कहने के बजाय, यह फिल्म निष्क्रियता का परिवर्तनवादी आह्वान है।

यह ध्यान, आंतरिक शांति और आंतरिक प्रार्थना के लिए बुलावा है।

थमने का आह्वान।

तर्कहीन अहंकारी मन से संचालित हर चीज को रोक दें।

स्थिर रहें और जानें।

स्थिरता से क्या निकलेगा यह आपको कोई भी नहीं बता सकता।

यह आध्यात्मिक मन से कार्य करने का आह्वान है।

यह किसी पुराने को याद करने जैसा है।

आत्मा जागती है और खुद को याद करती है।

यह एक नींद में डूबे यात्री की तरह है लेकिन अब खालीपन जाग जाता है और खुद को ही सब कुछ मानने लगता है।

आप सीमित अहंकारी मन से समाधि क्या है इसकी कल्पना नहीं कर सकते बिलकुल उसी तरह जैसे आप अंधे इंसान को यह नहीं समझा सकते की रंग क्या है।

आपका मन जान नहीं सकता।

वह इसे बना भी नहीं सकता।

समाधि को पाने का मतलब अलग दृष्टिकोण से देखना है, अलग चीज़ों को देखना नहीं बल्कि द्रष्टा को पहचानना है।

असीसी के सेंट फ्रांसिस ने कहा है, “जो आप खोज रहे हैं वही देख रहा है।

” आपने अगर एक बार चंद्रमा को देखा हो तो उसकी हर परछाई पहचान सकते हैं।

सच्चा आत्म हमेशा वहीं रहा है, यह हर चीज़ में है, लेकिन आपने इसकी उपस्थिति को महसूस नहीं किया है।

जब आप मन और इन्द्रियों से परे अपने स्वरूप को पहचानते और उसे मानने लगते हैं तो यह मुमकिन है कि आप बेहद मामूली चीज़ों से विस्मय का एहसास करें।

हम स्वयं विस्मय बन जाते हैं।

इच्छाओं से मुक्त होने की कोशिश न करें क्योंकि इच्छाओं से मुक्त होने की इच्छा भी एक इच्छा है।

आप स्थिर रहने की कोशिश नहीं कर सकते क्योंकि प्रत्येक प्रयास एक गति है।

उस स्थिरता को समझें जो हमेशा पहले से मौजूद है।

खुद स्थिर हो जाएँ और जानें जब सभी प्राथमिकताएँ त्याग दी जाती हैं, तब पता चलता है स्रोत का, लेकिन स्रोत से भी न चिपकें।

महान वास्तविकता, ताओ न तो एक है न ही दो।

रमण महर्षि ने कहा है “आत्मा केवल एक है।

यदि यह सीमित है तो यह अहंकार है, और अगर असीमित है तो यह अनंत और महान वास्तविकता है।

” जो कहा जा रहा है उसे यदि आप मानते हैं तो आपने इसे नहीं समझा है।

यदि आप नहीं मानते हैं तब भी आपने इसे नहीं समझा है।

विश्वास और अविश्वास आपके मन के स्तर पर काम करते हैं।

उन्हें जानकारी चाहिए, लेकिन यदि आप अपने अस्तित्व की तहकीकात करते हुए अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं की जाँच करते हैं, यह जानकर कि जाँच कौन कर रहा है, अगर आप इस सिद्धांत पर चलना चाहते हैं “मेरी नहीं, ऊपर वाले की मर्ज़ी चलेगी,” अगर आप सारे ज्ञान से आगे बढ़ना चाहते हैं तब आप वह एहसास समझ पाएंगे जिसकी ओर मैं इशारा कर रहा हूँ।

तभी आप गूढ़ रहस्य और साधारण अस्तित्व की सुंदरता का एहसास कर पाएंगे।

जीवन की एक और संभावना है।

कुछ ऐसा जो पवित्र, समझ से परे है जिसे आपके अस्तित्व की शांत गहराइयों में पाया जा सकता है, धारणाओं, नीतियों, अनुकूलित गतिविधियों और हर अभिरुचियों से परे।

इसे तकनीकों, अनुष्ठानों या प्रथाओं से नहीं पाया जा सकता।

इसे “कैसे” पाएँ का कोई तरीक़ा नहीं है।

कोई प्रणाली नहीं है।

उपाय का कोई रास्ता नहीं है।

जैसा कि ज़ेन में कहा जाता है यह जन्म से पहले अपने मूल चेहरे की खोज है।

यह खुद को निखारने का नाम नहीं है।

यह स्वयं प्रकाश बनना है; वह प्रकाश जो आत्मा के भ्रम को दूर करता है।

जीवन हमेशा अपूर्ण रहेगा और हृदय तब तक बेचैन रहेगा जब तक कि यह नाम और रूप से परे के रहस्य में राहत न पा जाए।

[संगीत] ओम् श्रीम् लक्ष्मी