HI – Samadhi1 समाधि 1 – वीडियो ट्रांसक्रिप्शन

माया, स्वयं का भ्रम

समाधि एक प्राचीन संस्कृत शब्द है, जिसके बराबर कोई आधुनिक शब्द नहीं है।
समाधि के बारे में फिल्म बनाना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
समाधि उस चीज के बारे में बताती है जिसे दिमागी स्तर पर नहीं बताया जा सकता है।
यह फिल्म मेरी अंदरूनी यात्रा की बाहरी अभिव्यक्ति है।
इसका उद्देश्य आपको समाधि के बारे में बताना और आपके मस्तिष्क के लिए जानकारी देना नहीं, बल्कि आपको अपने सही व्यक्तित्व की खोज करने के लिए प्रेरित करना है।
समाधि अब पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक है।
हम इतिहास के उस दौर में है जहाँ हमने न केवल समाधि को भुला दिया, बल्कि हमने उसे भुला दिया जो हम भूल चुके हैं।
यही भूलना माया है, आत्म का भ्रम।
मनुष्य के तौर पर हम अपनी रोजाना की जिंदगी में डूबे रहते हैं, यह भूल कर कि हम कौन हैं हम यहाँ क्यों हैं, या हम कहाँ जा रहे हैं।
हम में से ज्यादातर ने अपनी आत्मा या फिर बुद्ध ने जिसे श्रेष्ठ कहा, उसे जाना ही नहीं | – वह जो नाम, रूप और सोच से परे है।
नतीजतन हम यह मानते हैं कि हम ये सीमित तत्व हैं।
हम होश में या बेहोशी में, इस डर के साथ जीते हैं कि जिस सीमित संरचना में हमें जाना जाता है वह मृत हो जाएगा।
आज की दुनिया के ज्यादातर लोग जो आध्यात्मिक और धार्मिक कर्म करते हैं जैसे कि योग, प्रार्थना, ध्यान, भजन या किसी भी तरह की पूजा करते हैं वे ऐसी तकनीकों का अभ्यास करते हैं जो अनुकूल हैं।
मतलब वे केवल हमारे अहंकार निर्माण का हिस्सा हैं।
अन्वेषण और गतिविधि समस्या नहीं है- यह सोचना समस्या है कि आपको किसी बाहरी स्वरूप में समाधान मिल गया है।
अध्यात्म अपने सामान्य रूप में उस तर्कहीन सोच से बिल्कुल भी अलग नहीं है जोकि चारों ओर प्रचलित है।
यह दिमाग की एक और खलबली है।
यह मनुष्य के होने से ज़्यादा मनुष्य के करने से जुड़ा है।
अहंकार विधान अधिक पैसा, अधिक शक्ति, अधिक प्रेम, सब कुछ अधिक चाहता है।
तथाकथित आध्यात्मिक मार्ग के राही चाहते हैं कि वे अधिक आध्यात्मिक, अधिक जागृत, अधिक समृद्ध अधिक शांतिपूर्ण, अधिक स्थितप्रज्ञ बनें।
इस फिल्म को देखने का खतरा यह है कि आपका दिमाग समाधि पाना चाहेगा।
इससे अधिक खतरनाक है कि आपका दिमाग सोच सकता है कि उसने समाधि प्राप्त कर ली है।
जब भी कुछ पाने की इच्छा होती है तो आप यह समझ जाएं कि यह अहंकार निर्माण है जो कार्यरत है।
समाधि कुछ पाने या अपने में कुछ और जोड़ने का नाम नहीं है।
समाधि हासिल करना मरने से पहले मरना सीखना है।
जीवन और मृत्यु यिन और यांग की तरह हैं – एक अविभाज्य प्रवाह।
अंतहीन खुलासा, बिना किसी शुरुआत और अंत के।
जब हम मौत को दूर ढकेलते हैं तो हम जीवन को भी धक्का देते हैं।
जब आप यह सच्चाई जान लेते हैं कि आप कौन हैं तब न जीवन के लिए कोई डर रह जाता है ना मृत्यु के लिए।
हम कौन हैं यह हमें हमारा समाज और हमारी संस्कृति बताती है, और साथ ही हम अपनी अंदरूनी उन शारीरिक इच्छाओं और भटकाव के गुलाम होते हैं जो हमारी पसंद को नियंत्रित करते हैं अहंकार निर्माण दोहराव की कोशिश से बढ़कर कुछ नहीं।
यह बस वो एक रास्ता है जिसे कार्य-शक्ति ने चुना था और शक्ति की उस रास्ते पर दोबारा चलने की आदत है, वह चाहे जीव के लिए सही हो या गलत।
दिमाग या याददाश्त के कई स्तर होते हैं, सर्पिल चक्र के अंदर चक्र।
जब आपकी समझ आपके मन और आपके अहंकार से मेल खाती है तो यह आपको सामाजिक व्यवस्था से बांध देती है जिसे आप मैट्रिक्स भी कह सकते हैं।
अहंकार के कई पहलुओं के बारे में हम सचेत रह सकते हैं, लेकिन यह बेसुधी, आदिम बंधन, पुराने डर हैं जो दरअसल पूरे यंत्र को चला रहे हैं।
खुशी की ओर बढ़ने वाले और दर्द से दूर भागने वाले तमाम तरीके रोगियों जैसे व्यवहार में बदल जाते हैं …. हमारा काम …. हमारे रिश्ते …. हमारी मान्यताएं हमारी सोच और हमारा जीवन जीने का पूरा तरीका।
ज्यादातर लोग, मैट्रिक्स में अपना जीवन उलझा कर भेड़ बकरियों की तरह बेकार का जीवन जीते और मरते हैं।
हम बहुत ही संकीर्ण तरीकों में बंद होकर जीवन जीते हैं।
जीवन अक्सर जो बेहद दर्द से भरा होता है और हमें यह तक महसूस नहीं होता कि हम आजाद भी हो सकते हैं।
अतीत से प्राप्त विरासती जीवन को छोड़ा जा सकता है, उस जीवन को जीने के लिए जो अंदरूनी दुनिया से बाहर आना चाहता है ।
हम सबने इस संसार में जैविक सीमित संरचना के साथ जन्म लिया है, लेकिन बिना अपने बारे में जाने।
अक्सर जब आप किसी छोटे बच्चे की आंखों में देखते हैं, तो वहां व्यक्तित्व का कोई निशान नहीं होता, बल्कि जगमग खालीपन होता है।
जिस व्यक्ति में वह तब्दील होता है, वह चेतना पर पहना मुखौटा है।
शेक्सपियर ने कहा था, “सारी दुनिया एक मंच है, और सभी पुरुष और महिलाएं केवल कलाकार हैं”।
एक जागृत व्यक्ति में, चेतना उसके व्यक्तित्व और उसके मुखौटे के माध्यम से चमकती है ।
जब आप जागृत होते हैं, तब आप अपने किरदार से नहीं पहचाने जाते।
आप यह मानते ही नहीं कि आप वह मुखौटा हैं जो आपने पहन रखा है।
लेकिन आप भूमिका निभाने से पीछे भी नहीं हटते।
जब हम अपने चरित्र और अपने व्यक्तित्व से पहचाने जाते हैं तो यही माया है, स्वयं का भ्रम।
जीवन रूपी नाटक में अपने किरदार के सपने से जागना समाधि है।
प्लेटो के गणतंत्र लिखने के चौबीस सौ साल बाद भी, मानवता अभी भी प्लेटो की गुफा से बाहर निकल रही है।
दरअसल अब हम भ्रम को पहले से भी ज्यादा मानने लगे हैं।
प्लेटो ने सुकरात से लोगों के उस समूह की व्याख्या चाही जो जीवन भर गुफा में ज़ंजीर से बंधे हुए जी रहे थे, एक खाली दीवार का सामना करते हुए।
वे बस चीजों की दीवार पर पड़ने वाली उन परछाई को ही देख सकते थे जो उनके पीछे रखी आग की वजह से बनती थी।
कठपुतलियों का यह तमाशा ही उनकी दुनिया थी।
सुकरात के अनुसार ये परछाइयां ही कैदियों की दुनिया की वास्तविकता थी।
बाहरी दुनिया के बारे में बताए जाने के बावजूद वे यह मानते रहे की परछाइयां ही सब कुछ है।
इस संदेह के बावजूद कि इसके अलावा भी कुछ और है वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे जिसे वे जानते थे।
मानवता आज उन लोगों की तरह है जिन्होंने सिर्फ गुफा की दीवारों पर परछाइयां ही देखी हैं परछाइयां हमारे विचारों की तरह है।
सोच की दुनिया ही एकमात्र दुनिया है जिसे हम जानते हैं।
लेकिन एक और दुनिया है जो सोच से परे है।
द्वैतवादी मन से परे।
क्या आप गुफा छोड़ने के लिए तैयार हैं, उस सच्चाई को जानने के लिए सबकुछ छोड़ने को तैयार हैं कि आप कौन हैं? समाधि अनुभव करने के लिए जरूरी है कि आप परछाइयों से दूर हो जाएं, विचारों से दूर उजाले की ओर।
जब किसी व्यक्ति को अंधेरे की आदत होती है तब उसे धीरे-धीरे आदी बनना पड़ता है उजाले का।
नए परिवेश में रहने की आदत डालने के लिए, समय और प्रयास की ज़रूरत होती है, और चाहिए नए को ढूंढने और पुराने को भुलाने की इच्छाशक्ति।
दिमाग की तुलना चेतना के जाल, भूलभुलैया या जेल से की जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि आप जेल में हैं, बल्कि आप स्वयं जेल हैं।
जेल एक भ्रम है।
यदि आपकी पहचान एक छलावे वाले व्यक्ति के रूप में होती है तो आप सोये हुए हैं।
आपको जब जेल के बारे में पता हो, और आप भ्रम से बाहर आने के लिए लड़ रहे हों, तब आप भ्रम को सच मान रहे होते हैं और सोये हुए होते हैं, बस इस बार आपका स्वप्न एक दुःस्वप्न बन जाता है।
आप हमेशा परछाई का पीछा करते और उससे भागते रहेंगे।
समाधि अपने अलग अस्तित्व या अहंकार निर्माण के सपने से जागने का नाम है।
समाधि उस जेल की पहचान से निकलने का नाम है जिसे ‘मैं’ कहना चाहूँगा।
आप वास्तव में कभी भी मुक्त नहीं हो सकते हैं, क्योंकि जहां भी आप जाते हैं वहीं जेल होती है।
जागरूकता दिमाग या मैट्रिक्स से छुटकारा पाने का नाम नहीं, बल्कि, इसके विपरीत जब आप उससे पहचाने नहीं जाते, तब आप जीवन के खेल का आनंद अच्छे से ले पाएंगे, बिना किसी लालसा या डर के पूरी लीला का आनंद जस के तस लेते हुए।
प्राचीन शिक्षा में इसे लीला का दिव्य खेल कहा जाता था: द्वन्द्व में जीने का खेल मानव चेतना एक निरंतरता है।
एक छोर पर, मनुष्यों की पहचान भौतिक आत्म से होती है।
दूसरे छोर पर है समाधि, आत्म का अंत।
समाधि की ओर ले जाने वाले अंतहीन रास्ते का हर कदम, पीड़ा को कम कर देता है।
कम पीड़ा का मतलब यह नहीं है कि जीवन दर्द से मुक्त है।
समाधि दर्द और खुशी के द्वंद्व से आगे की बात है।
इसका मतलब है कि जो भी खुलासा होता है उस पर कम ध्यान और स्वतः निर्मित कम प्रतिरोध और यह प्रतिरोध ही है जो पीड़ा को जन्म देता है।
एक बार समाधिस्थ होना भी आपको अंतहीन विस्तार के दूसरे छोर पर क्या है, यह देखने देती है।
यह देखना कि भौतिक संसार और खुदगर्जी के अलावा कुछ और भी है।
समाधि में जब अपने स्वरूप का वास्तविक अंत होता है तो कोई अहंकारी विचार नहीं रह जाता, न कोई आत्म, न द्वंद्व लेकिन फिर भी रहता है मैं हूँ, श्रेष्ठ या अस्मिता।
उस खालीपन में ही शुरुआत होती है प्रज्ञा या बुद्धिमता की- यह सोच कि अंतर्भूत आत्म द्वन्द्वात्मक खेल और सारी निरंतरता से परे है।
अंतर्भूत आत्म कालातीत, अपरिवर्तनीय, हमेशा वर्तमान होता है।
ज्ञानोदय, मूल सर्पिल चक्र, हमेशा बदलती दुनिया या उस कमल में विलय का नाम है जिसमें समय आपके शाश्वत अस्तित्व में प्रकट होता है।
जब आप आत्म से पहचान हटा लेते हैं तो आपके अंदरूनी तार हमेशा खिलने वाले फूल की तरह खिलते हैं और समय की दुनिया और अनंत के बीच एक जीवित पुल बन जाते हैं।
अंतरात्मा को समझना केवल पथ की शुरुआत भर है।
ध्यानमग्न होते समय ज्यादातर लोगों को अनगिनत बार समाधि में जाने और उसके भंग होने का एहसास होगा तब जाकर वे इसे जीवन के अन्य पहलुओं में जोड़ पाएंगे।
ध्यान या आत्म मंथन के दौरान अपने अस्तित्व की प्रकृति के बारे में गहन अंतर्दृष्टि असामान्य बात नहीं है और आप फिर से पुराने रंग में ढल जाते हैं, इस सच्चाई को भुलाकर कि आप कौन हैं।
जीवन के हर पहलू, अपने अस्तित्व के हर पहलू में स्थिरता या खालीपन को समझने का मतलब, खालीपन का हरेक चीज़ के रूप में नर्तन।
स्थिरता गति से अलग नहीं है।
यह गति के विपरीत नहीं है।
समाधि में स्थिरता को गति के बराबर माना जाता है, आकार खालीपन के समान है।
यह मन के लिए बेतुका है क्योंकि मन का अर्थ है द्वंद का अस्तित्व में आना।
रेन डेकार्ट्स, पश्चिमी दर्शन के पिता, अपनी बात “मैं सोचता हूँ इसलिए मैं हूँ” के लिए प्रसिद्ध है।
कोई और कथन इतने स्पष्ट रूप से सभ्यता के पतन और गुफा की दीवारों पर परछाइयों के साथ एकीकरण को नहीं समझा सकता।
हर मानव की गलती की ही तरह, डेकार्ट्स ने भी मौलिक अस्तित्व की बराबरी, सोच से करने की गलती की।
अपने सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ की शुरुआत में, डेकार्ट्स ने लिखा था कि लगभग हर चीज़ को संदेह के घेरे में लिया जा सकता है; वे अपनी इन्द्रियों और अपनी सोच तक पर संदेह कर सकते हैं।
इसी तरह कलाम सूत्र में बुद्ध ने कहा कि सत्य का पता लगाने के लिए, सभी परंपराओं, शास्त्रों, शिक्षा, दिमाग और चेतना की हर बात पर संदेह करना चाहिए।
इन दोनों ही लोगों ने बड़े अविश्वास से शुरुआत की, लेकिन अंतर यह था कि डेकार्ट्स ने सोच के स्तर पर ही जानना बंद कर दिया था, वहीं बुद्ध गहराई में गए- उन्होंने मन के गूढ़ स्तरों को समझने का प्रयास किया।
शायद अगर डेकार्ट्स अपनी सोच से परे जाते, तो वे अपनी असली प्रकृति को महसूस करते और पश्चिमी चेतना आज बिलकुल अलग होती।
इसके बजाय, डेकार्ट्स ने एक ऐसे दुष्ट राक्षस की संभावना जताई जो हमें भ्रम के पर्दे में रख रहा हो।
डेकार्ट्स ने इस दुष्ट राक्षस की पहचान उसके कर्मों से नहीं की।
जैसा कि फिल्म मैट्रिक्स में दिखाया गया, हम सभी ऐसे विस्तृत प्रोग्राम से जुड़े हो सकते हैं जो हमें भ्रमपूर्ण सपनों की दुनिया से जोड़ता है।
फिल्म में, मनुष्य मैट्रिक्स में अपना जीवन जीते हैं, जबकि एक और स्तर पर वे केवल बैटरी थे, अपनी जीवन शक्ति उन यंत्रों को देने वाले जो उनकी ऊर्जा का इस्तेमाल अपने उद्देश्य के लिए करते हैं।
लोग हमेशा अपने से अलग बाहरी चीज़ को दोष देना चाहते हैं, दुनिया की हालत या अपने स्वयं के दुःख के लिए।
चाहे वह कोई व्यक्ति हो, विशेष समूह या देश हो, धर्म या किसी प्रकार का नियंत्रक डेकार्ट्स के बुरे राक्षस या मैट्रिक्स के संवेदनशील यंत्रों की तरह।
विडंबना यह है कि जिन राक्षसों की कल्पना डेकार्ट्स ने की उन्ही से उसने स्वयं को परिभाषित भी किया।
जब आप समाधि पा लेते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कहीं पर कोई नियंत्रक है, कोई यंत्र, और कोई दुष्ट राक्षस, जो हर रोज़ आपके जीवन को निचोड़ रहे हैं।
आप मशीन हैं आपकी स्वयं की संरचना कई छोटे सब-प्रोग्राम या छोटे मालिकों से बनी है।
एक ऐसा छोटा मालिक जो खाना चाहता है, दूसरा पैसा चाहता है, तो किसी को हैसियत, पद, ताकत सेक्स,आत्मीयता चाहिए।
किसी को दूसरों की समझ या उनका ध्यान चाहिए।
इच्छाएं सचमुच अंतहीन होती हैं और कभी भी तृप्त नहीं हो सकतीं।
हम अपनी जेलों को सजाने में, अपने मुखौटे को सुधारने के दबाव में, और छोटे मालिकों के पोषण में काफी समय खर्च करते हैं जिससे वे काफी शक्तिशाली हो जाते हैं।
किसी नशेड़ी की तरह ही, जितना ज़्यादा हम छोटे मालिकों की खुशामदी की कोशिश करते हैं, उतनी ज़्यादा हमारी लालसा बढ़ जाती है।
आजादी का मार्ग आत्म सुधार, या किसी भी तरह अपने स्वार्थ की पूर्ति करना नहीं है, बल्कि यह अपने स्वार्थ को पूरी तरह त्याग देना है।
कुछ लोग डरते हैं कि उनकी असली प्रकृति के जागने से वे अपना व्यक्तित्व और जीवन का आनंद खो देंगे।
जबकि सच्चाई इसके विपरीत है; आत्मा का अद्वितीय वैयक्तिकरण केवल तभी व्यक्त किया जा सकता है जब अनुकूलित आत्म पर काबू पाया जा सके।
क्योंकि हम मैट्रिक्स में सोते रहते हैं, इसलिए हम में से अधिकांश लोग यह कभी नहीं जान पाते कि वास्तव में आत्मा क्या कहना चाहती है समाधि के मार्ग में ध्यान शामिल है, जो दोनों को देख रहा है, अनुकूलित आत्म; जो बदल जाता है, और आपके असली स्वरूप की समझ; वह जो बदलता नहीं।
जब आप अपने अस्तित्व के स्रोत, अचल बिंदु पर आते हैं, तब आप आगे के निर्देशों का इंतजार यह जानने पर ज़ोर दिए बिना करते हैं कि आपकी बाहरी दुनिया कैसे बदलेगी।
मेरी इच्छा नहीं, बल्कि इससे उच्चतर संपन्न होगा।
यदि दिमाग केवल बाहरी दुनिया को बदलने की कोशिश करता है, तो आपको लगता है कि पथ क्या होना चाहिए, यह परछाई को बदल कर शीशे में अपनी छवि बदलने जैसा है।
दर्पण में दिख रही छवि की मुस्कान के लिए आप से प्रतिबिंब को नहीं बदल सकते, आपको उस स्वयं को पाना होगा जो छवि का सही स्रोत है।
जब आप अपने असली आत्म का एहसास कर लेते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि जो बाहर है उसे बदलना ही है।
जो बदलता है वह चेतन, बुद्धिमान, आंतरिक ऊर्जा या प्राण होता है जोकि अनुकूलित स्वरूपों से आज़ाद होता है और आत्मा से निर्देशित होने के लिए उपलब्ध हो जाता है।
आप आत्मा के उद्देश्य को तभी जान सकते हैं जब आप अनुकूलित आत्म और उसके अनंत लक्ष्यों को देख सकें, और उन्हें जाने दें।
ग्रीक पौराणिक कथाओं में, यह कहा गया कि देवताओं ने सिसिफस की निंदा एक अर्थहीन कार्य को अनंत काल तक दोहराने के लिए की थी।
उसका काम पहाड़ पर उस बड़े पत्थर को चढाने का था, जो वापस लुढ़क आता था।
फ्रांसीसी अस्तित्ववादी और नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक, अल्बर्ट कैमस ने सिसिफस की हालत को मानवता के रूपक की तरह देखा ।
उसने प्रश्न पूछा, ‘हम इस बेतुके अस्तित्व में अर्थ कैसे प्राप्त कर सकते हैं?’।
इंसानों के रूप में हम अंतहीन मेहनत करते हैं, जो कभी नहीं आता उस कल के लिए निर्माण करते हैं, और फिर हम मर जाते हैं।
अगर हम वास्तव में इस सच्चाई को महसूस कर लेते हैं तो हम अपने अहंकारी व्यक्तित्व से जुड़ कर या तो पागल हो जाएंगे या फिर जागृत होकर आज़ाद हो जाएंगे।
हम बाहरी संघर्ष में कभी सफल नहीं हो सकते, क्योंकि यह हमारे भीतर की दुनिया का प्रतिबिंब है।
ब्रह्माण्डीय मजाक, स्थिति का बेतुकापन स्पष्ट हो जाता है जब अहंकारी आत्म अपने बेकार कार्यों से जागृत होने में विफल हो जाता है।
जेन में एक कहावत है, “ज्ञानोदय से पहले लकड़ी काटो और पानी ले लो।
ज्ञान पाने के बाद, लकड़ी काटो, पानी ले लो”।
ज्ञानोदय से पहले गेंद को पहाड़ी पर चढ़ाना होगा, ज्ञान प्राप्ति के बाद भी गेंद को पहाड़ पर चढ़ाना होगा।
बदला क्या है? जो है उसके लिए आंतरिक प्रतिरोध।
संघर्ष रोक दिया गया है, या फिर यूं कहें की जो संघर्ष करता है उसे ही भ्रामक पाया गया।
व्यक्तिगत इच्छा या व्यक्तिगत मनऔर दैवीय इच्छा, या उच्चतर मन एक सीध में होते हैं।
अंततः समाधि सभी आंतरिक प्रतिरोधों को त्यागना है – सभी बदलती हुई घटनाओ को बिना किसी अपवाद के।
जो परिस्थिति के बावजूद आंतरिक शांति का एहसास कर लेता है, वही प्राप्त करता है सच्ची समाधि।
आप प्रतिरोध इसलिए नहीं करते क्योंकि किसी न किसी चीज़ की अनदेखी करते हैं, बल्कि इसलिए कि आपकी आतंरिक आज़ादी बाहर प्रासंगिक न हो।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जब हम वास्तविकता को स्वीकार करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम दुनिया में कार्रवाई करना बंद कर दें, या हम ध्यानमग्न शांतिवादी बन जाते हैं।
दरअसल सच्चाई इसके विपरीत हो सकती है; जब हम असुविधाजनक उद्देश्यों से प्रेरित हुए बिना कार्य करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, तब हमारी आतंरिक ऊर्जा की पूर्ण शक्ति के साथ, ताओ के अनुरूप कार्य किया जा सकता है।
कई लोग तर्क देंगे कि दुनिया को बदलने और शांति कायम करने के लिए ज़रूरी है हमारे कथित दुश्मनों के खिलाफ ज़ोरदार लड़ाई की।
शांति के लिए लड़ना सन्नाटे के लिए चिल्लाने के समान है; यह वही ज़्यादा करता है जो आप नहीं चाहते।
आजकल हर चीज़ के विरुद्ध युद्ध छिड़ा हुआ है: आतंक के खिलाफ युद्ध, बीमारी के खिलाफ युद्ध, भूख के खिलाफ युद्ध।
दरअसल हर युद्ध हमारे ही विरुद्ध है।
यह लड़ाई एक सामूहिक भ्रम का हिस्सा है।
हम कहते हैं कि हम शांति चाहते हैं, लेकिन हम युद्ध करवाने वाले नेताओं को ही चुनते रहते हैं।
हम खुद से झूठ बोलते हैं यह कह कर कि हम मानवाधिकारों के पक्षधर हैं, लेकिन कारख़ानों में बनी चीज़ों को खरीदते रहते हैं।
हम कहते हैं कि हमें स्वच्छ हवा चाहिए, लेकिन हम प्रदूषण करते रहते हैं।
हम चाहते हैं कि विज्ञान कैंसर से हमारा इलाज करे, लेकिन खुद को बीमार करने वाली उन आदतों को नहीं बदलते जिनसे हम बीमार पड़ सकते हैं।
हम खुद को धोखा देते हैं कि हम एक बेहतर जीवन को बढ़ावा दे रहे हैं।
हम अपने उन छिपे हुए हिस्सों को नहीं देखना चाहते जो पीड़ा और मृत्यु की अनदेखी कर रहे हैं।
यह विश्वास जो हमारी सोच और विचार से आया है कि हम कैंसर, भूख, आतंक, या किसी भी दुश्मन के खिलाफ युद्ध जीत सकते हैं, दरअसल हमें इस धोखे में रखता है कि हमें इस ग्रह पर जीने के तरीके को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आंतरिक दुनिया वह जगह है जहां क्रांति सबसे पहले होनी चाहिए।
जब हम अपने अंदर जीवन के सर्पिल चक्र को महसूस कर सकेंगे, तभी बाहरी दुनिया ताओ के अनुसार हो पाएगी।
तब तक, हम जो कुछ भी करते हैं वह मन द्वारा फैलाई गई अराजकता को ही बढ़ाएगा।
युद्ध और शांति एक अंतहीन नृत्य में साथ-साथ पैदा होते है; ये दोनों एक साथ चलते रहते हैं।
एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते।
जैसे अंधेरे के बिना प्रकाश, और धरातल के बिना ऊंचाई नहीं रह सकती।
ऐसा लगता है जैसे दुनिया को चाहिए बिना अंधेरे के रोशनी, बिना खालीपन के पूर्णता, बिना उदासी के खुशी।
मन जितना अधिक संलग्न होता है, उतनी ही ज़्यादा यह दुनिया बिखर जाती है।
अहंकारी दिमाग से आने वाला हर समाधान इस विचार से प्रेरित होता है कि कहीं कोई समस्या है, और समाधान, हल करने की कोशिश से भी अधिक बड़ी समस्या बन जाता है।
जिसका आप विरोध करते हैं वह बरक़रार रहता है।
मानवीय सरलता नए एंटीबायोटिक्स बनाती है किन्तु प्रकृति दो कदम आगे ही रहती है और बैक्टीरिया को और मज़बूत बना देती है।
इस लड़ाई में हमारे द्वारा किये गए सारे प्रयासों के बावजूद, कैंसर का प्रसार वास्तव में बढ़ रहा है, दुनिया में भूखे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, दुनिया भर में आतंकवादी हमलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
हमारे दृष्टिकोण में क्या गलत है? गोएथे की कविता में ओझा के चेले की तरह ही, हमने एक महान शक्ति पा तो ली है, लेकिन उसे इस्तेमाल करने की समझ नहीं है।
समस्या यह है कि हम जिस उपकरण का उपयोग करते हैं उसकी हमें समझ ही नहीं हैं।
हम मानवीय मन और उसकी उचित भूमिका और उद्देश्य को समझते ही नहीं हैं।
जिस सीमित नियंत्रित तरीके से हम सोचते हैं, महसूस करते हैं जीवन का अनुभव प्राप्त करते हैं उसी से संकट पैदा होता है।
हमारे तर्कवाद ने हमें कई प्राचीन संस्कृतियों के ज्ञान को पहचानने और अनुभव करने की हमारी क्षमता को समाप्त कर दिया है।
हमारी अहंकारी सोच ने हमें जीवन की गहराई और प्रकांड पवित्रता, जीवन के असली मालिक, और एक अलग स्तर की समझ को महसूस करने की क्षमता से वंचित कर दिया है जो अब लगभग मानवता के सामने हार चुका है।
मिस्र की प्राचीन परंपरा में, नेटर्स ठेठ किस्म के वे चरित्र होते थे जिन की विशेषताएं उन लोगों में आ जाती थी जो अपने शारीरिक और आध्यात्मिक शरीर को इस तरह स्वच्छ करते थे जिससे वह ऊंचे दर्जे की चेतना को अपने अंदर रखने के काबिल हो जाते थे।
मूल नेटर या ज्ञान के इस दिव्य सिद्धांत को थॉथ या तेहुति के नाम से जाना जाता था।
अक्सर ऐसे लेखक के रुप में दर्शाया जाता था जिसका सिर चिड़िया या इबिस जैसा है, और जो सारे ज्ञान और विद्या के मूल का प्रतिनिधि है।
थॉथ को सोच या विचार के ब्रह्माण्डीय सिद्धांत के रूप में भी बताया जा सकता है।
थॉथ ने हमें भाषा, विचार, लेखन, गणित, और मन की सभी कलाएँ और अभिव्यक्तियां दी हैं।
केवल उन लोगों को ही थॉथ के पवित्र ज्ञान को जानने की अनुमति मिली जिन्हे विशेष प्रशिक्षण मिला था।
थॉथ की पुस्तक कोई भौतिक पुस्तक नहीं, बल्कि आकाशीय दुनिया का ज्ञान है।
ऐसा कहा जाता है कि थॉथ का ज्ञान प्रत्येक मनुष्य के भीतर बड़ी गहराई में एक गुप्त स्थान में छिपा था, और एक सुनहरी नागिन द्वारा संरक्षित किया गया था।
खजाने की रक्षा करने वाले सांप या ड्रैगन का मिथक ऐसा है जो कई संस्कृतियों में विद्यमान है और कुंडलिनी शक्ति, ची, पवित्र आत्मा और आंतरिक ऊर्जा जैसे नामों से बुलाया गया है।
सुनहरी नागिन उस अहंकारी निर्माण जैसी है जो आंतरिक ऊर्जाओं से बंधी हुई है और जब तक इसमें महारत और इस पर काबू नहीं पाया जा सकेगा, आत्मा कभी भी सच्चा ज्ञान नहीं पा पाएगी।
ऐसा कहा जाता था कि थॉथ की पुस्तक पढ़ने वाले को केवल पीड़ा ही मिली, इसके बावजूद की देवताओं के रहस्य और सितारों में छुपी ही हर बात वे जान जाते थे।
यह समझना चाहिए कि जिस भी व्यक्ति ने पुस्तक पढ़ी, जिस भी अहंकार ने इसे नियंत्रित करने की कोशिश की उसे पीड़ा ही मिली है।
मिस्र की परंपरा में जागृत चेतना की पहचान ओसिरिस से की गयी है।
इस जागृत चेतना के बिना, सीमित आत्म द्वारा प्राप्त कोई ज्ञान या समझ खतरनाक, और उच्च ज्ञान से अलग होगा।
होरस की आंख खुली ही रहनी थी।
यहां पर पाया जाने वाला गूढ़ अर्थ ईडन के बगीचे की जानी पहचानी कहानी “द फॉल” के समान है।
थॉथ की किताब अच्छाई-बुराई के ज्ञान की उस किताब की तरह है जिसका फल खाने का लालच आदम और ईव को हुआ था।
मानवता पहले ही वर्जित फल खा चुकी है, थॉथ की पुस्तक को पहले ही खोल चुकी है, और बगीचे से बाहर निकाल दी गई है।
सांप उस मौलिक सर्पिल की तरह है जो छोटी दुनिया से लेकर सारी दुनिया तक फैला हुआ है।
आज सांप आपकी तरह जी रहा है।
यह अहंकारी मन है जिसे इस दुनिया के रूप में बताया गया है।
हम पहले कभी इतने ज्ञान तक नहीं पहुंच पाए थे।
हम इस भौतिक संसार की गहराई में जा चुके हैं, यहां तक ​​कि तथाकथित ईश्वरीय कण भी ढूंढ रहे हैं, लेकिन हम कभी भी इतने सीमित, अपने वजूद, अपने रहन-सहन से अनजान नहीं थे, और हम यह भी नहीं समझ पाते कि हम कैसे पीड़ा पैदा कर रहे हैं।
हमारी सोच ने ही आज की इस दुनिया को बनाया है।
जब भी हम किसी चीज़ को अच्छा या बुरा कहते हैं, या अपने मन में कोई पसंद बना लेते हैं तो यह अहंकार निर्माण या स्वार्थ के पैदा होने से होता है।
समाधान शांति के लिए लड़ना या प्रकृति पर विजय पाना नहीं, बल्कि इस सत्य को पहचानना है; कि अहंकार निर्माण का होना द्वन्द्व, अपना और पराया, तेरा-मेरा, मानव और प्रकृति, अंदरूनी और बाहरी में विभाजन पैदा करता है।
अहंकार हिंसा है; इसे अपने अस्तित्व के लिए दूसरे से एक अवरोध, एक परिधि की आवश्यकता होती है।
अहंकार के बिना किसी के विरुद्ध कोई युद्ध है ही नहीं।
लाभ के लिए कोई अहंकार, कोई अतिव्यापी प्रकृति नहीं है।
हमारी दुनिया में ये बाहरी संकट गंभीर आंतरिक संकट को दर्शाते हैं; हम नहीं जानते कि हम कौन हैं।
हमें हमारी अहंकारी पहचान से जाना जाता है, डर से हम भरे रहते हैं और अपनी असली प्रकृति से दूर हो जाते हैं।
जातियां, धर्म, देश, राजनीतिक संबद्धता, हम जिस भी समूह से संबंधित होते हैं, सब हमारी अहंकारी पहचान को मज़बूत करते हैं।
आज ग्रह पर मौजूद लगभग हर समूह अपने परिप्रेक्ष्य को वैसे ही सत्य बताता है, जैसे हम व्यक्तिगत स्तर पर करते हैं।
सच्चाई को अपना बताकर, समूह अपने अस्तित्व को उसी तरह बढ़ावा देता है जैसे अहंकार या आत्म संरचना अपने आप को दूसरे के विरुद्ध परिभाषित करता है।
अब पहले से भी ज़्यादा भिन्न वास्तविकताएं और ध्रुवीकृत विश्वास तंत्र पृथ्वी पर एक साथ रह रहे हैं।
ऐसा हो सकता है कि एक ही बाहरी घटना के प्रति अलग अलग व्यक्ति बिलकुल ही अलग विचारों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का अनुभव करें।
इसी तरह, संसार और निर्वाण, स्वर्ग और नरक, एक ही दुनिया के दो अलग-अलग आयाम हैं।
एक घटना जो किसी व्यक्ति को सर्वनाशक लगे, दुसरे के लिए आशीर्वाद भी बन सकती है।
तो यह स्पष्ट हो रहा है कि आपकी बाहरी परिस्थितियों को आपकी आतंरिक दुनिया को किसी भी रूप में प्रभावित करने की आवश्यकता नहीं है।
समाधि का एहसास करने का मतलब स्वतः गतिमान पहिया बनना, स्वायत्त होना, स्वयं ब्रह्मांड होने जैसा है।
आपके जीवन का अनुभव बदलती घटनाओं के लिए प्रासंगिक नहीं है।
मेटाट्रॉन के क्यूब से समानता दर्शाई जा सकती है।
विभिन्न प्राचीन ईसाई, इस्लामी और यहूदी ग्रंथों में मेटाट्रॉन का उल्लेख किया गया है, और यह मूल रूप से मिस्र के थौथ के साथ साथ ग्रीस के हर्मीस ट्राइस्मेजिस्टस से संबंधित है।
मेटाट्रॉन टेट्रैग्रामेटन से बहुत ही करीब से जुड़ा हुआ है।
टेट्रैग्रामेटन एक मौलिक ज्यामितीय पैटर्न है, भौतिक सच्चाई का नमूना या मूल उत्पत्ति, जिसे ईश्वर की दुनिया या लोगोस भी कहा जाता है।
यहां हम आकार का द्वी-आयामी रूप देख रहे हैं, लेकिन यदि आप एक दूसरे तरीके से देखें, तो आपको एक थ्री-डी क्यूब दिखाई देता है।
जब आप क्यूब देखते हैं, तो आकार में कुछ बदलाव नहीं होता, लेकिन आपका दिमाग आपके देखने के तरीके में एक नया आयाम जोड़ चुका है।
आयामी स्वरूप या किसी का दृष्टिकोण दुनिया को देखने के एक नए तरीके का आदी हो जाने की बात है।
समाधि प्राप्त करने पर हम परिप्रेक्ष्य से या नए दृष्टिकोण बनाने के लिए स्वतन्त्र हो जाते हैं, क्योंकि कोई आत्म केंद्रित या किसी विशेष दृष्टिकोण से जुड़ाव नहीं होता।
मानव इतिहास में सबसे महान बुद्धिजीवियों ने अक्सर सीमित आकारों से दूर के विचारों की ओर इशारा किया है।
आइंस्टीन ने कहा है, “मनुष्य की सही औकात मुख्य रूप से इस बात से निर्धारित होती है कि उसने खुद से आज़ादी कैसे पाई है।
” तो ऐसा नहीं है कि अपने बारे में सोच और अस्तित्व बुरा है, सोच एक अद्भुत चीज़ है जब दिमाग दिल की सेवा करता है।
वेदांत में यह कहा गया है कि मन एक अच्छा सेवक बन सकता है लेकिन वह एक खराब गुरु है।
अहंकार हमेशा भाषा और नाम के ज़रिये सतत रूप से शुद्ध होता रहता, और लगातार निर्णय लेता रहता है।
एक की जगह दूसरी चीज़ को तरजीह देना।
जब मन और इंद्रियां आपके स्वामी होते हैं, तो वे अंतहीन पीड़ा, अंतहीन लालसा और उलझन देंगे, हमें सोच के मैट्रिक्स में बंद करते हुए।
यदि आप समाधि का एहसास करना चाहते हैं, तो अपने विचारों को अच्छे या बुरे के रूप में न देखें, बल्कि पता लगाएं इंद्रियों से पहले, सोचने से पहले आप कौन हैं।
जब सारे नाम त्याग दिए जाते हैं तो चीजों को उनके असली स्वरूप में देखना संभव हो जाता है।
जिस क्षण एक बच्चे को यह बताया जाता है कि पक्षी क्या है, और अगर वे उन्हें बताई गई बात को मान जाते हैं तो वे फिर कभी पक्षी नहीं देख पाते।
वे केवल अपने विचार देखते हैं।
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि वे स्वतंत्र, सचेत और जागृत हैं।
अगर आपको लगता है कि आप पहले से ही जागे हुए हैं, तो आप उसे पाने के लिए मुश्किल काम क्यों करेंगे जिसे आप पहले से ही अपने पास मौजूद मानते हैं ? जागने से पहले, यह स्वीकार करना आवश्यक है कि आप सो रहे हैं, मैट्रिक्स में जी रहे हैं।
अपने आप से झूठ बोले बिना, ईमानदारी से अपने जीवन को परखें।
क्या आप अपनी मर्ज़ी से अपने रोबोट जैसे, दोहराव वाली जीवन शैली को रोकने में सक्षम हैं? क्या आप खुशी की तलाश करना और दर्द से भागना बंद कर सकते हैं, क्या आप कुछ खाद्य पदार्थों, गतिविधियों, दिल बहलाने वाली चीज़ों के आदी हैं? क्या आप लगातार निर्णय ले रहे हैं, दोष दे रहे हैं, खुद की और दूसरों की आलोचना कर रहे हैं? क्या आपका दिमाग लगातार उत्तेजना की तलाश करता है, या क्या आप शांति में जीकर पूरी तरह से संतुष्ट हैं? क्या आप इस बारे में प्रतिक्रिया करते हैं कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप अनुमोदन, सकारात्मक प्रबलता चाहते हैं? क्या आप अपने जीवन की परिस्थितियों को किसी तरह कमजोर करते हैं? अधिकांश लोग अपने जीवन का अनुभव उसी तरह करेंगे जैसे वे कल और अब से एक साल बाद, और अब से दस साल बाद करेंगे।
जब आप अपनी रोबोट जैसी प्रकृति का समझने लगते हैं तो आप अधिक जागृत हो जाते हैं।
आप समस्या की गहराई को पहचानना शुरू कर देते हैं।
आप पूरी तरह नींद में डूबे हुए हैं, सपने में खोए हुए हैं।
प्लेटो की गुफा के निवासियों की तरह, इस सत्य को सुनने वाले अधिकतर लोग अपने जीवन को बदलने के लिए न तो तैयार होंगे न काबिल होंगे क्योंकि वे अपने पारिवारिक तरीकों से जुड़े हुए हैं।
हम अपने तरीकों को न्यायसंगत बताने के लिए काफी आगे चले जाते हैं, सत्य का सामना करने की जगह अपने सिर को मिटटी में दबा लेते हैं हम अपने रक्षक चाहते हैं, लेकिन हम खुद सूली पर चढ़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
स्वतंत्र होने के लिए आप क्या कीमत चुका सकते हैं? यह समझें कि यदि आप अपनी आंतरिक दुनिया बदलते हैं, तो आपको अपने बाहरी जीवन को बदलने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
आपकी पुरानी संरचना और आपकी पुरानी पहचान को वो मृत मिट्टी बनना चाहिए जिसमें से नई उत्पत्ति होती है।
जागृति की तरफ जाने का पहला कदम यह महसूस करना है कि हमें मानवता के मैट्रिक्स से, मुखौटे से पहचाना जाता है।
हमारे भीतर किसी को यह सत्य सुनकर नींद से जग जाना चाहिए।
आपका एक हिस्सा है, कालनिर्पेक्ष, जो हमेशा से सत्य को जानता है।
दिमाग का मैट्रिक्स हमारा ध्यान भटकाता है, मनोरंजन करता है, हमें अंतहीन रूप से लालसा और भटकाव के लगातार बदलते रूपों के चक्र में कार्य, उपभोग, लालच करवाता रहता है, हमारी चेतना के खिलने, हमारी उत्पत्ति के जन्म-अधिकार से हमें दूर रखता है, जिसे समाधि कहते हैं।
तर्कहीन सोच सामान्य जीवन के लिए है।
आपका दिव्य तत्व गुलाम बन चुका है, सीमित आत्म संरचना से पहचाना जाता है।
महान ज्ञान, आप कौन हैं यह सच्चाई आपके अस्तित्व की गहराई में दफ़न है।
जे कृष्णमूर्ति ने कहा है, “अत्यंत बीमार समाज के अनुसार ढलना किसी के स्वास्थ्य का कोई मापदंड नहीं है।
” अहंकारी दिमाग के रूप में चिह्नित होना बीमारी है और समाधि इसका इलाज।
इतिहास में साधु-संतों और जागृत प्राणियों सभी ने आत्मसमर्पण के ज्ञान को सीखा है।
सच्चे आत्म को महसूस करना कैसे संभव है? जब आप माया के पर्दे से झांकते हैं, और भ्रमपूर्ण आत्म को छोड़ देते हैं, तो बचता क्या है?