आंतरिक लोक बहिर्लोक आवलि प्रथम भाग – आकाश

फ़िल्म का पहला भाग, इनर वर्ल्ड्स, आउटर वर्ल्ड्स (अंदरूनी जगत, बाह्य जगत)।
आकाश मानव रहित है, “शून्य” या ख़ालीपन जो अंतरिक्ष के निर्वात को भरता है।

आंतरिक लोक बहिर्लोक द्वितीय भाग – कम्बुक चक्र / सर्पिल

पाइथागोरियन दार्शनिक प्लेटो ने रहस्यमय ढंग से संकेत दिया कि कोई स्वर्ण कुंजी थी जो ब्रह्मांड के सभी रहस्यों को एकीकृत करती थी।

आंतरिक लोक बहिर्लोक तृतीय भाग सर्प एवं जलज

आदिम कुंडली प्रत्यक्ष जगत् है, जबकि आकाश अव्यक्त या स्वतः शून्यता है। वास्तविकता इन दो चीज़ों के बीच की पारस्परिक क्रिया है; यांग और यिन, या चेतना और तत्व। अक्सर कुंडली का प्रतिनिधित्व साँप, अधोमुखी धारा से किया जाता है, जबकि पक्षी या खिला हुआ कमल का फूल ऊर्ध्वमुखी धारा या ज्ञानातीत तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

आंतरिक लोक बहिर्लोक चतुर्थ भाग “चित्प्रवृत्ति से परे”

हम अपना जीवन सुख और स्वतंत्रता के परिशीलान में समन कर देते हैं मानो कि वे क्रय वस्तु हों। हम अपनी ही इच्छाओं एवं लालसाओं के दास हो गए हैं। यही है माया, भ्रम व रूप की अंतहीन लीला । जागरण तथा आनंद की इच्छा करना गलत नहीं है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि इन्हें स्वयं से बाहर नहीं पाया जा सकता है।