समाधि भाग 3, (पथहीन पथ)
ज़ेन में एक कहावत है:
“ज्ञानोदय एक दुर्घटना है लेकिन अभ्यास हमें दुर्घटना-प्रवण बनाता है।”
इस फ़िल्म में हम उन तंत्रों की जाँच करेंगे जिनके द्वारा कोई दुर्घटना-प्रवण हो जाता है।
समाधि 3 अभ्यास के दो आयामों का सिंहावलोकन कराती है, जो हैं सचेतनता और मानसिक शून्यता।
समाधि सीमित आत्म के साथ तादात्म्य से मुक्ति है; हमारे बंधनों से मुक्ति; पीड़ा से मुक्ति। समाधि की ओर ले जाने वाली साधना या आध्यात्मिक अभ्यास के दो मूलभूत पहलू हैं: प्रथम, उन अभ्यासों के माध्यम से आत्म संरचना का शुद्धिकरण, जो ऊर्जा को अनुकूलित पैटर्न और मनोविकारी सोच से बाहर निकालती हैं। जब ऊर्जा मुक्त होती है तो वह स्व या आत्मा के उच्च स्तरों में अधिकाधिक अंतर्संबंध, प्रेम और विस्तार सुगम कराती है। जिसे आप ‘अन्य’ समझते हैं, वह आप में समाहित हो जाता है। मन के वृद्धिशील उच्च स्तरों में आत्म संरचना केंद्र बिंदु जैसी बन जाती है।
विरोधाभास यह है कि अचेतन बंधनों से मुक्त होने के लिए हम जो भी अभ्यास करते हैं, वे स्वयं अनुकूलित होते हैं। एक बिंदु पर, समाधिस्थ होने की सभी तकनीकों, सभी अवधारणाओं, सभी कार्यों, सभी प्रयासों को छोड़ना होगा। साधक जागृत नहीं हो सकता। आत्म संरचना जागृत नहीं हो सकती। वह केवल अहंवादी नियंत्रण प्रतिक्रियाओं और वरीयताओं को छोड़ सकती है जो स्थूल-सूक्ष्म और हेतुक स्तरों पर जाग्रत रहने के लिए आधार तैयार करती है और आंतरिक नए स्वरूप प्रदान करती है।
अभ्यास के दूसरे पहलू को निराकार आत्म-परिशीलन कहा जा सकता है जो जागरूकता के बारे में जागरूक होने से संबंधित है; इस बोध के प्रति जागरूक होना कि स्व या आत्म के सभी स्तर अंततः रिक्त हैं। पक्षी के पंखों की तरह साधना के ये दो पहलू, चेतनता और मानसिक शून्यता, व्यक्ति को समाधि- सभी द्वैत के समापन की ओर ले जाती हैं।
तुम ही पथ हो और पथ की हर बाधा भी तुम ही हो। समाधि का पथ ऐसा मार्ग नहीं है जहाँ आप किसी मंज़िल तक पहुँचने के लिए क़दम दर क़दम आगे बढ़ाते हैं। भ्रम का मिटना पथ है, जो दरअसल यह जागरूकता है कि आप कौन, कहाँ और क्या हैं।